Movie Review
Movie | पुष्पा द रूल (पुष्पा 2) |
कलाकार | अल्लू अर्जुन , रश्मिका मंदाना , फहद फासिल , जगदीश प्रताप भंडारी , जगपति बाबू , प्रकाश राज , राव रमेश , सौरभ सचदेवा , ब्रह्माजी और श्रीलीला |
लेखक | सुकुमार , श्रीकांत विस्सा और राजेंद्र सप्रे (हिंदी संवाद) |
निर्देशक | सुकुमार |
निर्माता | नवीन येरनेनी और यलमिनचिली रवि शंकर |
रिलीज | 5 दिसंबर 2024 |
Pushpa 2 – The Rule FuLL MoviE सबसे पहली बात जो ‘पुष्पा 2’ के बारे में जाननी जरूरी है, वह ये कि ये कोई महान फिल्म नहीं है। ये एक आम मुंबइया मसाला फिल्म जैसी एक्शन फिल्म है। और, चूंकि एक हिट फिल्म की सीक्वल है लिहाजा इसकी अपनी ब्रांड वैल्यू दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच लाने में सफल है। किसी सुपरहिट फिल्म का सीक्वल बनाना आसान नहीं होता। खासतौर से तब जब कहने को कोई खास कहानी न बची हो। तेलुगु सिनेमा के दिग्गज निर्देशक सुकुमार और निर्माता अल्लू अरविंद के बेटे अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’ की मेकिंग आसान नहीं रही है। इस फिल्म का मामला मलयालम फिल्म अभिनेता फहद फासिल की तारीखों के चलते बार-बार लटका। फिल्म ‘पुष्पा 3 द रैम्पेज’ के एलान के साथ खत्म होती है और इस एलान से पहले ही निर्देशक सुकुमार ने फिल्म की सारी कमजोर कड़ियां किनारे लगा दी हैं।
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श्रेयस तलपदे की आवाज का कमाल
पुष्पराज ने पिछली फिल्म ‘पुष्पा द राइज’ में नारा लगाया था ‘मैं झुकेगा नहीं’, अबकी उसका एलान है, ‘मैं हरगिज नहीं झुकेगा’। बीवी उसकी मां बनने वाली है। काली मां से वह एक बेटी चाहता है ताकि वह अपने ससुराल जाए तो उसे वहां का कुलनाम मिल सके। बचपन से लेकर पुष्पा इसी कुलनाम को लेकर ही तो बार बार दुखी होता रहा है। पुष्पा की आवाज इस बार थोड़ी कड़क है। अभिनेता श्रेयस तलपदे ने फिर एक बार पुष्प राज के किरदार को परदे पर खिला दिया है। फ्लावर से वाइल्ड फायर बनने की कोशिश करते पुष्प राज की कहानी यहां थोड़ा पीछे से शुरू होती है। छलांग लगाने के लिए वह पंजे भी सिकोड़ता नजर आता है लेकिन बचपन का कोमल पुष्पा बड़ा होकर गंधर्व पुष्प राज कैसे बन गया, इसकी कहानी जबर्दस्त है। श्रीमती पुष्प राज यानी कि श्रीवल्ली का नैन मटक्का यहां भी जारी है। अपने सामी पर वह फिदा है। पूजा पाठ में भी नंबर वन है, बस खाना हर बार ‘नॉन वेज’ ही बनाती है। श्रीवल्ली को सुकुमार ने घरेलू बीवी बनाया है और फिल्म में समंथा रुथ प्रभु की कमी पूरी करने के लिए इस बार श्रीलीला को आइटम गर्ल बनाया है। समांथा जैसा न तो नमक उनमें हैं और न ही उन जैसी चपलता। मामला किसिक में कसक भरकर लाल चंदन हो गया। फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी ये गाना ही है।
सीक्वल में फुस्स हो गया फाफा
अल्लू अर्जुन को प्रभुजी मानकर चंदन घिसते रहे लेखक-निर्देशक सुकुमार को लगता रहा है कि फिल्म ‘पुष्पा वन’ की सफलता का श्रेय उन्हें उतना नहीं मिला, जितना अल्लू और रश्मिका को मिला। रश्मिका तो सीधे हिंदी सिनेमा के हीरो नंबर वन रणबीर कपूर की हीरोइन बनने में कामयाब रहीं। अल्लू अर्जुन की कहानी इस बार बचपन से लेकर बुजुर्गियत की दहलीज पर आ खड़े हुए पुष्प राज की कहानी है और इस बार वाकई में उनके लिए मामला आसान नहीं है। राउडी बॉय पुष्पा और लीडर पुष्पा के बीच की जो लकीर इस कहानी में फहद फासिल के आने से आई है, उसे पार करने में इस बार ये दोनों जियाले कमाल भरे कर गए हों, लेकिन भंवर सिंह शेखावत का किरदार यहां कहानी में कुछ खास करिश्मा कर नहीं पाता है। सुकुमार को भी समझ आ गया कि ये किरदार उनके लिए अब ‘असेट’ नहीं ‘लायबिलिटी’ है जो लिहाजा उन्होंने वही किया जो ऐसे में किसी भी काबिल निर्देशक को कर देना चाहिए। रश्मिका मंदाना पूरी फिल्म में पुष्पराज के आगे पीछे डोलती श्रीवल्ली बनी हैं। अदाकारी दिखाने को उन्हें सिर्फ एक सीन मिला और बस उस एक सीन में उनकी एक चोट सौ सुनार पर भारी पड़ी है।
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कहानी के रिवर्स स्विंग ने कर दिया खेल
फिल्म ‘पुष्पा द रूल’ यानी ‘पुष्पा 2’ की कहानी को जिस तरह सुकुमार पिछली बार विदेश से समंदर के रास्ते रेखा चित्रों के जरिये लाल चंदन के जंगलों तक लाए थे, वैसा ही रिवर्स स्विंग इस बार की कहानी में भी है। जापान के किसी बंदरगाह से शुरू होने वाली ये फिल्म चूंकि तीन घंटे के करीब लंबी है लिहाजा फिल्म की कहानी का विस्तार काफी लंबा है। इस विस्तार में अपने किरदारों से सुकुमार को जिस मदद की उम्मीद रही होगी, वो उन्हें मिली है। जगदीश भंडारी, जगपति बाबू, राव रमेश और ब्रह्माजी सब अपने अपने किरदारों में मुस्तैद दिखते हैं। कहानी पिछली बार श्रीवल्ली का दिल जीतने की थी और इस बार कहानी है, अपनी मां को अपने ही घर में वो सम्मान दिलाने की जिसके लिए पुष्पराज बचपन से ही त्रास झेलता रहा। इस बार की चौपड़ में पुष्पा और भंवर ने तो पासे फेंके ही हैं, कुछ पांसे उस भ्रष्ट राजनीति के भी हैं जिनको पुष्पा अपने बाएं हाथ का खेल समझता है।
श्रीवल्ली के आगे फीकी रही श्रीलीला
फिल्म को देखने आए दर्शकों को रश्मिका और श्रीवल्ली दोनों से अलग-अलग आस रही होगी। रश्मिका के भीतर एक गुस्सा है। ये गुस्सा उनके अभिनय में किरदार की जरूरत के हिसाब से मौका मिलते ही बह निकलता है, लेकिन इस गुस्से को प्रकट करने के नए तरीके उन्हें सीखने होंगे। हां, फीलिंग्स वाला पूरा सीक्वेंस उनका दमदार है। लेकिन उनके किरदार में जात्रा वाले दृश्य से पहले ज्यादा गहराई नहीं दिखती। जात्रा वाला दृश्य, उसके बाद लगातार आने वाले दो गाने और उसके बाद काली के रूप में अल्लू अर्जुन का तांडव नृत्य फिल्म का सबसे सफल सीक्वेंस है। और, इसके बाद भतीजी को बचाने निकले चाचा का क्लाइमेक्स वाला एक्शन भी तालियां बटोर ले गया। दर्शकों को श्रीलीला में सामंथा जैसी किसिक पूरी होने की कसक जगी थी, लेकिन उनका ‘किसिक’ सॉन्ग ज्यादा जमा नहीं।
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सिनेमैटोग्राफी में अव्वल नंबर फिल्म
फिल्म की तकनीकी टीम में संगीतकार देवी श्री प्रसाद ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार साफ नजर आते हैं। उनकी हिंदी पर कमजोर पकड़ भी इस बार उजागर हो गई है। फिल्म बनाने वालों को भी डीएसपी की ये कमजोरी रिलीज से पहले ही समझ आ गई। इसीलिए फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर में एस थमन और सैम सी एस की भी मदद ली गई है। फिल्म की तकनीकी टीम में जिस एक शख्स की तारीफ करने का मन बार बार होता है वह पोलैंड के मूल निवासी सिनेमैटोग्राफर कुबा ब्रोजेक मिरोस्लॉव। फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन काफी रंगीन है। प्रीतशील सिंह ने अल्लू अर्जुन के गेटअप पर काबिले तारीफ काम किया है। नवीन नूली का संपादन बेहतर होता तो फिल्म कम से कम 20 मिनट कम हो सकती है। साउथ सिनेमा में इस साल ‘हनुमान’ ने जिस होशियारी से सिनेमा को साधा, उसे नाग अश्विन ‘कल्कि 2898’ में आगे बढ़ाया और, अब आ गया है पुष्पराज। अपने इलाके और बॉक्स ऑफिस पर ‘रूल’ करने के लिए।